नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-18
आकाशगंगा से उतरती हुई किरणें उस कुंड के पानी से टकराकर अप्रत्याशित रंगों में बिखर जाती। जो सीधे जाकर वायु में कहीं विलय होने लगी। लेकिन थोड़ी ही देर में पंच द्वार का आभामंडल नजर आने लगा। देखते ही देखते वे पांचों द्वार जयघोष के साथ खुलने लगे। वे पांचों द्वारा अनेकों रत्नो जड़ित और विशिष्ट किरण बिखेरते हुए नजर आ रहे थे। उनके निकलने वाली किरणें उनमें जड़ित रत्नों के कारण और भी शोभायमान थी।
जब वे किरणें आकाशगंगा से आने वाली और परावर्तित किरणों से टकराती तो वहां चंद भर में जैसे एक नया जीव उत्पन्न होता, और थोड़े ही देर में वह पंच द्वारा खुलने लगे। लक्षणा सिर्फ आंखें बंद किए हुए यह अनुभव किये जा रही थी, कि आसपास की तेज प्रकाश की किरणें उसके मन के भीतर तक बिना किसी अवरोध के प्रवेश कर रही थी। वह अपने आप को इतना हल्का महसूस कर रही थी,जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ी से भी कम उसे अपने शरीर और आत्मा में कोई भी अंतर जान नहीं पड रहा था।
अपने चंचल मन की स्थिति में परिवर्तन देख लक्षणा खुद ही आश्चर्यचकित थी, उसे ऐसा लग रहा था, मानो किसी ने उसे ऐसे मिट्टी में झोंक दिया हो, जहां उसके सभी पाप, दुष्कर्म बुरे विचार और मन की चंचलता जलकर भस्म होते जा रही हो। उसे वहां का वातावरण एकदम शांत सुकून देने वाला प्रतीत हो रहा था।
ऐसा लग रहा था, मानो शरीर सुन्न हो कर सिर्फ और सिर्फ आत्मा के मार्गदर्शन पर निढाल होकर पड़ा है, सिर्फ पंचतत्वों का शरीर अनुभव करने के काम आ रहा है, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। आज तक सिर्फ चमत्कारों को लक्षणा ने सिर्फ कहानी किताबों में पढ़ा और लोगों से सुना ही मात्र था। लेकिन कुछ दिनों से जब लक्षणा को अपनी शक्तियों का आभास हुआ तो वे इन्हें महसूस भी करने लगी थी।
अब उसके मन में भक्ति भाव मानो अपने आप ही उत्पन्न हो रहा है, वह साफ स्पष्ट तौर पर देख पा रही थी ,अपने अंदर यह परिवर्तन, लेकिन क्यों और कैसे?यह पता नहीं चल पा रहा था। बस प्रकाश ही प्रकाश चारों ओर एक अद्भुत शक्ति का संचार मन के भीतर जो संपूर्ण विकारों को जलाकर नष्ट कर रहा था।वो आंखें बंद कर अपने आप को उस कमलनुमा पुष्प में बंद होने के पश्चात भी अपने आसपास होने वाली घटना हुआ अनुभव कर रही था।
इस पर्वत की सकारात्मक ऊर्जा ने उसे पहले ही अपनी नकारात्मक सोच और अनुभूति से आजाद कर दिया, और बची कुछ कमी उस चाबी के के पास जाने ने पर वह भी पूरी हो गई।
क्या पुण्य किए होंगे मैंने,,,,! जो मुझे ऐसी आत्मशांति प्राप्त हुई, जिसकी तलाश में तपस्या करते हुए जाने कितने ही युग यूं ही बीत जाते है।
लक्षणा इतना सोच ही रही थी , कि अचानक वहां की रोशनी दोगुनी हो गई। और देखते ही देखते वह उसमें खोने लगी,,,! जैसे अब उसका कोई अस्तित्व ही शेष ना रहा हो। मंत्रमुग्ध कर देने वाले श्लोक और मंत्रों का उच्चारण जो भले ही उसकी समझ से परे हो! लेकिन अन्तर्मन की शक्ति को पूर्ण रूपेण जाग्रत करने में सक्षम थे।
इन मंत्रों की ध्वनि कान में पढ़ते ही जैसे आत्मा स्वयं की अपने शरीर को छोड़कर परमात्मा में लीन हो जाए। इतनी शक्ति और सामर्थ्य था उसमें......! राम भजन इस वातावरण में डूबता ही जा रहा था, कि तभी अचानक पांच अनोखे गुप्त दरवाजे प्रकट हुए, जिसका विवरण आज तक कभी भी उसने किसी के भी मुंह से ना सुना था और ना देखा था।
उन पांचों दरवाजों से निकलने वाली नीली रोशनी अत्यंत ही लुभावनी थीं। वह चाबी किसी जीवंत में ही मनुष्य की तरह जैसे लक्षणा को हृदय में ले, उन दरवाजों के निकट जा खड़ा हुआ। लक्षणा जैसे अब अपनी नहीं उस वृक्ष की आंखों से आसपास की हर चीज को देख रही थी। लक्षणा ने देखा असंख्य चमत्कारी पेड़, औषधि वाले वृक्ष, वृहद और विस्तृत लताएं, चमकती हुई लताएं, सुंदरियों का रूप ले जैसे देवताओं को रिझाने के लिए खड़ी हुई है।
उत्तम पशु पक्षी और ना जाने कौन सी प्रजातियां, कीट पतंगे इत्यादि सभी जैसे पंक्तिमय होकर उन दरवाजों से उस मंदिर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। दरवाजे में प्रवेश करने के बाद माहौल जैसे सोच और समझ से भी परे था। इतनी तेज रोशनी जैसे सब कुछ उस रोशनी में ढक गया हो। हर कोई दरवाजे से प्रवेश के पश्चात जिस जगह पर पहुंचता उसी जगह का हो जाता। फिर भी आने वाले प्रत्येक जीव और जीवात्मा को स्थान कम ना पड़ता।
लक्षणा को वहां का माहौल बहुत ही शांत और खुशनुमा सा लग रहा था। जैसे वह उसमें रमते जा रही हो। वह मन ही मन आनंदित और प्रफुल्लित हुए जा रही थी। यह सब माहौल देखकर लक्षणा के मन में बहुत कुछ और सुंदर सुन्दर भाव उत्पन्न हो रहे थे।
लक्षणादेखती है, कि इन सबके बीच पांच नाग रानियां जीवंत होकर हाथों में दीप लिए जैसे किसी का आह्वान कर रही हो। उनके ना समझने वाले मंत्र, उपचार और संगीतमय पद्य मंत्रमुग्ध कर देने वाले आकाश से एक विशेष रोशनी जलधारा के साथ प्रमुख स्थान पर स्थापित शिवलिंग के ऊपर एक तार से जैसे गंगा की तरह आकाश से पहुंच रहे थे।
असंख्य सितारे और देवता गण उस जलधारा के साथ-साथ आकाश से उतरते। और प्रणाम की मुद्रा में प्रथम पंक्ति में जाकर खड़े हो जाते। इस क्रम के दौरान अचानक अनेको नागों ने अपने नागमणि हाथ में लिए आगे की और बढ़ाया और देखते ही देखते वे सारे नागमणि उस शिवलिंग के पास एकत्रित होने लगे।
तब तो जैसे एक आश्चर्यचकित होने वाले विशेष आकृति उस शिवलिंग के समक्ष नजर आने लगी। और शंखनाद के साथ मर्दन की आवाज के साथ प्रार्थना शुरू हो गई। कुछ ही पल में ऐसा लगा जैसे महादेव अपने परिवार समेत वहां प्रकट हुए। चारों और सिर्फ मां मनसा देवी और शिव परिवार के साथ उन राजकुमारियों की जय जयकार सुनाई देने लगी। और देखते ही देखते वह विशाल प्रकाश कुंज तेज रोशनी के साथ एक चमत्कारिक रूप से विलुप्त हो गया।
यह सब देखकर लक्षणा आश्चर्यचकित तो थी ही, और उसे वहां का माहौल बहुत ही अचंभित और आनंदित सा प्रतीत हो रहा था।
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
04-Nov-2023 12:32 PM
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